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अभिषेक अग्रवाल, देहरादूनः उत्तराखंड में एक तरफ पर्यटन बढ़ने से आर्थिकी को बल मिल रहा है। वहीं, दूसरी तरफ यहां पर्यटकों की आमद ज्यादा बढ़ जाने से पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक चिंतित हैं। प्रदेश के सीमांत जिलों के हिमालयी इलाकों में पर्यटन गतिविधियां बढ़ रही हैं लेकिन इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में मानवीय गतिविधियां बढ़ने से बर्फ और ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार तेज हो गई है। बर्फ से सराबोर रहने वाली पंचाचूली की पर्वत श्रृंखलाएं काली नजर आ रही हैं।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक प्रफेसर सुनील नौटियाल ने अब तक हुए शोधों का हवाला देते हुए बताया कि 1985 से 2000 तक हिमालय और ग्लेशियरों में बर्फ पिघलने की रफ्तार 2 से 3 गुना तक बढ़ी है। उन्होंने बताया कि 40 साल में हिमालय क्षेत्र में 440 अरब टन बर्फ पिघल चुकी है जो वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा रही है। पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र में बर्फ पिघलने की रफ्तार अत्यधिक तेज होने पर चिंता जताई है। वर्ष भर में 28000 से अधिक यात्री पहुंचे
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस बार सर्दियों में अच्छी बर्फबारी होने की संभावना है। ऐसे में बर्फ पिघलने के कारण काली पड़ चुकी हिमालयी श्रृंखलाओं में फिर से सफेदी भरा वास्तविक स्वरूप लौट सकता है। उत्तराखंड स्थित आदि कैलाश और मानसरोवर यात्रा शुरू होने के बाद से पर्यटन और तीर्थाटन गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। आदि कैलाश और कैलाश दर्शन के लिए बीते एक साल में 28 हजार से ज्यादा यात्री हिमालयी क्षेत्रों का रुख कर चुके हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां बढ़ना यहां के पर्यावरण असंतुलन की बड़ी वजह है।
वाहनों का अधिक आवागमन ठीक नहीं
हिमालयी क्षेत्र में अधिक संख्या में वाहन पहुंचने और इससे निकलने वाले कार्बन और बढ़ते मानवीय आवागमन से तापमान में बढ़ोतरी के साथ पर्यावरण बदल रहा है। इससे हिमालयी श्रृंखलाओं में तेजी से बर्फ पिघल रही है। आदि कैलाश के नजदीक विश्व प्रसिद्ध पंचाचूली की हिमालयी श्रृंखलाओं के कालेपन का यही कारण है। हिमालयन पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के प्रफेसर सुनील नौटियाल और निदेशक जीबी पंत कहते हैं कि पर्यावरण असंतुलन पूरे विश्व की समस्या है। निश्चित तौर पर हिमालयी क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां अधिक होने से इसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। बर्फ पिघलने से ही पर्वत श्रृंखलाएं काली पड़ रही हैं।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के निदेशक प्रफेसर सुनील नौटियाल ने अब तक हुए शोधों का हवाला देते हुए बताया कि 1985 से 2000 तक हिमालय और ग्लेशियरों में बर्फ पिघलने की रफ्तार 2 से 3 गुना तक बढ़ी है। उन्होंने बताया कि 40 साल में हिमालय क्षेत्र में 440 अरब टन बर्फ पिघल चुकी है जो वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा रही है। पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र में बर्फ पिघलने की रफ्तार अत्यधिक तेज होने पर चिंता जताई है। वर्ष भर में 28000 से अधिक यात्री पहुंचे
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस बार सर्दियों में अच्छी बर्फबारी होने की संभावना है। ऐसे में बर्फ पिघलने के कारण काली पड़ चुकी हिमालयी श्रृंखलाओं में फिर से सफेदी भरा वास्तविक स्वरूप लौट सकता है। उत्तराखंड स्थित आदि कैलाश और मानसरोवर यात्रा शुरू होने के बाद से पर्यटन और तीर्थाटन गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। आदि कैलाश और कैलाश दर्शन के लिए बीते एक साल में 28 हजार से ज्यादा यात्री हिमालयी क्षेत्रों का रुख कर चुके हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां बढ़ना यहां के पर्यावरण असंतुलन की बड़ी वजह है।
वाहनों का अधिक आवागमन ठीक नहीं
हिमालयी क्षेत्र में अधिक संख्या में वाहन पहुंचने और इससे निकलने वाले कार्बन और बढ़ते मानवीय आवागमन से तापमान में बढ़ोतरी के साथ पर्यावरण बदल रहा है। इससे हिमालयी श्रृंखलाओं में तेजी से बर्फ पिघल रही है। आदि कैलाश के नजदीक विश्व प्रसिद्ध पंचाचूली की हिमालयी श्रृंखलाओं के कालेपन का यही कारण है। हिमालयन पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के प्रफेसर सुनील नौटियाल और निदेशक जीबी पंत कहते हैं कि पर्यावरण असंतुलन पूरे विश्व की समस्या है। निश्चित तौर पर हिमालयी क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां अधिक होने से इसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। बर्फ पिघलने से ही पर्वत श्रृंखलाएं काली पड़ रही हैं।
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